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________________ कारणसे व्याख्यान समयमें मुहपत्ती बांधते थे । और वह रिवाज, कारणके नष्ट होने पर भी कहीं कहीं अभी तक चला आता है। लेकिन व्याख्यानके समयमें बांधने वाले भी यह कभी नहीं सिद्ध कर सकते हैं कि-यह शास्त्रानुकूल प्रवृत्ति है। तेरापंथियोंका यह कहना तो सरासर झूठ ही है कि-'व्याख्यानमें एकप्रहर बांधते हैं। एक प्रहर कभी नहीं बांधते । सारा व्याख्यान ही घंटे डेढ घंटेका होता है, उसमें भी आधा व्याख्यान होनेके बाद मुहपत्तीकी पडिलेहणा करते हैं । उतने समयमें जीवोत्पत्ति भी नहीं होती, जिसका कारण दिखलाकर तेरापंथी दिन भर बांधना स्थापन करते हैं। दिनभर मुहपत्तीके बांधे रखनेसे वह बिलकुल थूकसे गीली (आली) हो जाती है, और इससे उसमें संमूछिम जीवोंकी उत्पत्ति भी होती है । तेरापंथी - कहते हैं कि-मूहसे निकले हुए कफमें जीवोत्पत्ति नहीं होती, यह भी बिलकुल शास्त्रविरुद्ध ही कथन है। क्योंकि-पनवणासूत्रके, प्रथमपद,-पत्र ५५ में इस प्रकारका पाठ है: “कहि णं भंते ! समुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतो मणुस्सखेत्ते पणयालीसाए जोयणसयसहस्सेसु अवाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पण्णरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमी. मु छप्पन्नाए अंतरदीवएसु गब्भवतियमणुस्साणं चेव उच्चारेनु वा पासवणेसु वा. खेलेसु वा सिंघाणएसु वा वंतेसु वा पितेसु वा पूएसु वा सोणिएसु वा सुकेसु वा सुक्कपोग्गलपरिसाडेसु वा विगयजीवकलेवरेसु वा इत्थीपुरिससंजोएसु वा नगरनिदपणेसु वा सव्वेसु. चेव असुइएस ठाणेसु एत्थ णं समुच्छिममणुस्सा संमुच्छति " .
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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