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________________ no.00 0000000000000 भाव-भक्तिका पाठ दिखाया, फिर भी मूंह छिपाया है, __ ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है। A जिन प्रतिमाकी पूजा करनेवाला सम्यग्दृष्टी है, __ पूजासे जो विमुख रहा नर, वह तो मिथ्यादृष्टी है। महाकल्पके इसी पाठको, जिसने नहीं मनाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है। जब आणंदने व्रत लिये, उस समय प्रतिज्ञा यह की है:_ 'अन्य तीर्थक देव न वादु' प्रतिमा सिद्ध इसीसे है। अक्कल नहीं ठिकाने जिसकी, मूढ पंथ भरमाया है, . ऐसे देखो अजब मनबने, जगमें गजब मचाया है । ६७ जिन प्रतिमाकी तरह साधुकी सेवा करने वालेको, दीर्घायुष्य शुभ कर्म बंधाते, देखो वीजे ठानेको । उपमासे प्रतिमाकी पूजा, नहीं हृदयमें लाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ ६८ इसी सूत्रमें फिर भी देखो, ठवणा सत्य बताया है, निक्षेपे जो चार बताये, उसमें ठवणा आया है। इन सबको भी नहीं मानकर, कैसा ऐब लगाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है। १ मणांगसूत्र पृ० ११७ .............3000.03.0.0..0.me.nio... O (१६)
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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