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________________ *** ̄*** ̄*** ̄***06660666066*0$$$0$660666066*0**** $$0♦♦♦044 ६९ उबबाइ ‘अरिहंत चेइयाणि, ' क्या यह पाठ बताता है ?, अंबड़ने भी प्रतिमा पूजी, यही सूत्र दिखलाता है । अपने घरकी बात न जानें, झूठा ढोंग मचाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ ७० सतर भेदसे जिनप्रतिमाकी, पूजाका अधिकार कहा, इसी सूत्र रोयपसेणी में, प्रतिमाको 'जिनसदृश' कहा । 'निःश्रेयस' का फलभी आया, फिर भी हठ पकडाया है, ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है ॥ ७१ आलोयण विधि चली सूत्रमें, उसमें भी यह दर्शायाः" साधु, पास प्रभुप्रतिमाके जा, आलोयण ले " यह आया । करें अर्थ, इसका क्या वे जो, जिनने मुख बंधाया है ?, ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है || ७२ भरतरायने अष्टापद पर, मणिमय बिंब भराये हैं, गौतमस्वामी जिनवंदनके हेतु यहाँ पर आये हैं । संप्रतिने भी सवाक्रोड जिन बिंबोंको बनवाया है, ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है ॥ ७३ महानिशियमें यही बताया, 'जो जिनबिंब भराता है, १ पृ० २.९६ - २९७ । २ पृ० १९० । *0*** ̄***O*** ̄*** ̄**6066804< ( १७ ) ***C***♦♦♦0d** ̄***0*4¢06660664066*0**40***0****
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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