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________________ Î*** ̄***0............OHOHOHOHo...gomoni C*** Q***c*****• >44 प्रश्नव्याकरणसूत्र कहे, यह आंख खोल देखो भाई । पकडा सो पकडा यह रक्खे, छोडे नहि पकडाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ ६१ समकित धारी सूरयाभने प्रभुप्रतिमा पूजी देखो, इसी सूत्र यपसेणीमें नाटक भी इसका देखो । स्पष्ट पाठ होनेपर, कैसा फिर, इसको पलटाया है:ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ ६२ " नाटककी जब आज्ञा मांगी, वहाँ वीरमभु मौन रहे, " कहें कुपंथी ' धर्म कहता, क्यों आज्ञा प्रभु नहि देते ?' समझ नहीं इस न्याय नीतिकी: - 'अनिषिद्ध, स्वीकृत होता है ऐसे देखो अजब मजबने, जममें गजब मचाया है ॥ ६३ अगर न होती प्रभुकी आज्ञा, जब गौतमने पूछा था, क्यों करते वर्णन नाटकका ? कहते 'अनुचित ही यह था ' । इन बातोंको नहीं समझकर, ठोके जो मन आया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ ६४ जिन प्रतिमाकी सेवा करता साधु, निर्जरा करता है, ऐसा खुल्लंखुल्ला देखो, नव्याकरण कहता है । १ पृ० ३३९ । २ ५० ७५ से । ३ पृ० ४१५ । **O***0❖❖❖044+00 (84) **** ̄***O*** ̄*** ̄*** ̄*** ̄***O***C***0**60*** ̄***
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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