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________________ * भेजी प्रतिमा अभयकुंवरने, आर्द्रकुमरके पास सही, देख, हुआ उस समय उसीको 'जातिस्मरण' ज्ञान वहीं । मुयगडांगके छठे अध्ययनमें, यह अधिकार बताया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है। कहें कुपंथी 'भेजा ओघा, ' नहीं तत्त्वको सोचा है, ओघेको कहता आभूषण क्या ? उसने जो सोचा है। इसी कल्पना हीके कारण, नहीं तत्त्वको पाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ दोवेइने जिन प्रतिमा पूजी, हाता यह फरमाता है, स्पष्ट पाठ मिलने पर, क्यों यह मूढमती शरमाता है ?। प्रभुपूजा-प्रभुदर्शनके विण, यों ही जन्म गमाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है। देव-देवियोंको मानें, फिर जाकर नाक घिसाते हैं, प्रभुपतिमाके आगे जानेको, क्यों ये हिचकाते हैं ? । नहीं शरम आवे इनको, यह नवीन पंथ चलाया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है ।। KO . 0 नाम ' अहिंसा के दिखलाए, उसमें 'पूजा' दिखलाई, १ द्वितीय श्रुतस्कंधमें । २ द्रौपदी। 3 पृ० १२५५ । *.0..0.0.0.00000000ckro... (१४)
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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