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________________ बेलगाम जिला। [७९ मम्बरवानी ग्राममें हैं। दूसरा शिलालेख उन्हीं ऐतिहासिक वातोंको प्रगट करता हुआ इसी मंदिरके लिये उसी दिन उन्हीं शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें दूसरी भूमियोंके दानको कहता है जो बेलगाममें थीं इसमें कार्तवीर्यकी स्त्रीका नाम पद्मावती है । इस किलेके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि इसको जैन राजाने बनवाया था। (नोट-बेलगामके जैनियोंसे मालूम हुआ कि एक दफे कोई जैन मुनिसंघ वेणुग्राममें आया था-तब खबर पाकर राजा और पञ्चलोग रात्रिको ही मशालें जलाकर दर्शन करनेके लिये गए । मुनि सब ध्यानस्थ मौन थे पीछे लौटते हुए अन्तमें जो मशालवाला था उसकी मशालकी लौ किसी वांससे लग गई। इस बातपर किसीने ध्यान न दिया सब चले आए वह आग बढ़ती हुई फैल गई और जिन वासोंके मध्यमें मुनि गण ध्यान कर रहे थे वहां तक फैल गई और उसने ध्यानस्थ मुनियोंके शरीरोंको दग्ध कर दिया । मुनियोंने ध्यान नहीं छोड़ा । दूसरे दिन जब यह खबर प्रगट हुई तो महान शोक व दुःख हुआ । इस प्रमादके दोषके मिटानेके लिये राना और पंचोंने यह प्रायश्चित लिया कि १०८ जैन मंदिर बनवाए जावें । कहते हैं इस किलेमें १०८निन मंदिर छोटे या बड़े बनवाए गए थे। बेलगाममें अब भी बहुत ज़ैनी हैं व कई जैन मंदिर हैं। इस किलेकी कमलवस्तीमें एक प्रतिमा विराजित है जिसकी सेवा पूना श्रीयुत देवेन्द्र लोकप्पा चौगुले लकड़ीके व्यापारी बेलगाम फोर्ट करते हैं। (Indian antiquary V. IV P. 34) में बेलगाम शहरके सम्बंधमें लिखा है कि प्राचीन बेलगामको जैन राजाने बसाया था। जैनकवि परसिज भवनंदन बेलगाम
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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