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७४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इन खंभोंमें पालिश बहुत चमकदार है-द्वार पर देवताओंके चित्र बीचमें पनासनज नमूर्ति है। भीतर भी वेदीके बाहर कमल, भीतर कमल, वेदीके पीछे दो हाथी ऊपर दो सिंह २४ चिन्हव यहां बहुतसे कमल हैं-एकएकके भीतर कई कमल हैं । यहांकी पत्थरकी कारीगरी आबूनीके जिन मंदिरोंकी कारीगरीसे मिलती है। यहां जो मूलनायक श्री नेमिनाथजीकी बड़ी मूर्ति थी वह बेलगाम शहरकी बड़ी वस्तीमें विरानित है । वर्ण कृष्ण है-यह मंदिर देखने योग्य है-दूसरी चतुर्भुज वस्ती है । इन तीन मंदिरोंके सिवाय इस किलेमें और भी मंदिर थे क्योंकि किलेके बाहर
और भीतर जो अब घर हैं उनमें द्वारके खंभे जो लगे हैं वे जनमदिरोंके लगे हैं । सन १८८४ में दो बहुत ही सुन्दर नक्काशीके पत्थर एक बागमें खोदनेपर निकले थे-इसी शताब्दीमें दो राट्ट राजाओंके शिलालेख किलेके मंदिरोंसे पाए गए हैं वे बम्बई रापल एसियाटिक सोसायटीको दे दिये गए हैं। यह प्राचीन कनड़ी भाषामें हैं । इनमेंसे एकमें राष्ट्रकूट या राट्ट वंशीय महाराज शेनवि०का नाम है-वंशावली कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक गई है जो करीव ११९९ से १२१८ तक यहां राज्य करते थे। तब एक वीचा राजाका और उसके पुत्रोंका वर्णन है । फिर वह लेख कहता है कि सन् १२०५ या शाका ११२७ में पौषसुदी २ के दिन जब राज्यधानी वेणुग्राममें कार्तिवर्मा और मल्लिकार्जुन राज्य कर रहे थे तब श्रीयुत शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें राजा वीचाके बनाए गए राहोंके जैन मंदिरके लिये भूमि दान किये गये थे-जो भूमि दी गई थी वे करवल्ली जिलेमें