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________________ ५४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहाड़ीकी दक्षिण ओर एक श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर है जहां अक्टूबरमें वार्षिक मेला होता है। धूलियासे उत्तर पश्चिम ६२ मील तलोदा है। (३) यावलनगर-पूर्व खानदेश । सावदासे दक्षिण १२ मील । यह स्थान पहले मोटा देशी कागज़ बनाने में प्रसिद्ध था । (४) भामेर-तालुका पीपलनेर । निजामपुरसे ४ मील । पहले एक बड़ा स्थान था । पहाड़ीके सामने निजामपुरकी तरफ बहुतसी गुफाएं हैं जिनमें जाना कठिन बताया जाता है। ( Ind. Ant. Vol II P. 128 & Vol IV. P. 339 ) यह भामेर धूलियासे उत्तर पश्चिम ३० मील है । यहां गांवके ऊपर पश्चिममें १ गुफा है वरामदा ७४ फुट है तीन द्वार हैं कमरा २४ से २० फुट है ४ चौखुण्टे खम्भे हैं भीतोपर श्री पार्श्वनाथ व अन्य जैन तीर्थङ्करोंको मूर्तियां अङ्कित हैं। गांवके बाहर दो पहाड़ियोंके पश्चिम एक साधुका स्थान है । ___ (५) निजामपुर-पीपलनेरसे उत्तर पूर्व १० मील--यहां बहुतसे ध्वंश स्थान हैं। एक पाषाणका जैन मन्दिर श्री पार्श्वनाथ भगवानका है जो ७५ से ५९ फुट है । यह १७ वीं शताब्दीमें सूरत और आगराके मध्यमें पहला बड़ा नगर था । (६) पाटन तथा पीतल खोरा--तालुका चालिसगांव । चालिस गांव रेलवे प्टेशनसे दक्षिण पश्चिम १२ मील, यह एक पुराना ध्वंश नगर है। यहां १॥ मीलपर पहाड़िया हैं । यहीं पीतल खोरा गुफाएं हैं। पश्चिमकी घाटियोंमें नागार्जुनकी कोठरी, सीताकी न्हानी और श्रीनगर चावड़ी नामकी गुफाए हैं। ध्वंश मंदिरों में एक जैन मन्दिर है।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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