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________________ कच्छ राज्य । ४६ (१४) कच्छ राज्य । इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तर और उत्तर पश्चिम सिन्धु, पूर्व - पालनपुर, दक्षिण - काठियावाड़ व कच्छ खाड़ी, दक्षिण पश्चिम भारतीय समुद्र । इसमें ७६१६ वर्गमील स्थान है । इतिहास यह है कि प्राचीनकालमें यह मिमन्दरके राज्यका भाग था पीछे शकोंके हाथमें गया । फिर पार्थियनोंने कबजा किया । सन् १४० और ३९० के मध्य में यहां सौराष्ट्रके क्षत्रपोंने राज्य किया फिर मगधके गुप्त राजाओंमें शामिल होगया और वल्लभी राजाओंने राज्य किया। सातवीं शताब्दी में यह सिन्धका भाग होगया । - (१) भद्रेश्वर (भद्रावती) अन्जारसे दक्षिण १४ मील समुद्र तटपर यह एक प्राचीन नगरका स्थान है । बहुतसा मसाला पत्थर बनानेके लिये हटा लिया गया है । परन्तु अब भी यहां जैन मंदिर देखने योग्य है । १७ वीं शताब्दी में इस मंदिरको मुसल्मानोंने लूट लिया और बहुतसी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियोंको खंडित कर दिया । १२ वीं और १३ वीं शताब्दीमें यह मंदिर प्रसिद्ध यात्राका स्थान था । यह जगडूशाहका मंदिर कहलाता है । इसकी भीत और भोपर कुछ लेख है । देखो ( Arch report W. India Vol. II ). यह मंदरासे पूर्वोत्तर १२ मील है । Y
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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