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________________ orammam महीकांठा एज सी। [३६ जैन मंदिर सबसे बड़ा है। पहले यहां ३६० मंदिर थे अब केवल ५ हैं । बहुतसे ज्वालामुखी पर्वतकी अग्निसे नष्ट होगए । एकमें शिलालेख सन् १२४९ का है कि कुमारपालके मंत्री चाहड़के पुत्र ब्रह्मदेवने कुछ इमारत इसमें जोड़ी, दूसरा सन् १२०० का है कि सर्व मंडलिकोंके तख्त अर्बुदके राजा श्रीधर वर्षदेवने जिनपर सदा सूर्य चमकता है इस अरसन पूरमें एक कूप बनवाया। दूसरे भी लेख हैं। कुछ मंदिर विमलशाहके बनवाए हुए हैं । एक पाषाण पर लेख है । " श्री मुनिसुव्रत स्वामी बिम्बम् अश्वावबोध स मलिकाविहार तीर्थोद्धार सहितम् ।” कुम्भरियामें ५ मंदिर जैनोंके शेष हैं । इस नगरको चितौड़के राजा कुंभने बसाया था। शिल्पकारीके खंभे बहुत बड़े नेमिनाथके मंदिरजीमें हैं। एक खंभेपर लेख है कि इसे सन् १२५३में आमपालने बनवाया। इस बडे मंदिरमें आठ वेदियां हैं जिनमें श्री आदिनाथ और पार्श्वनाथकी मूर्तिये हैं बीचमें श्री नेमिनाथकी मूर्ति है जिसमें सन १६१८का लेख हैं। मंडपमें जैन मूर्तियां सन् ११३४ से १४६८ तककी हैं। (७) बड़ाली या अभीजरा पार्श्वनाथ-ईडरसे १० मील । दि. जैन मंदिर प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ चतुर्थकालकी पद्मा ० है ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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