________________
२६ ]
मुंबईप्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक ।
मान १०० के छोटी २ जैन साधुओंकी समाधियें हैं जिनपर लेख भी हैं । यह दि ० जैनियोंकी हैं ।
(२) रांदेर - सूरत शहर से २ मील तापती नदीके दाने तटपर । यह चौरासी तालुकेमें एक नगर है । दक्षिण गुजरातमें सबसे प्राचीनस्थानों में यह एक है । ईसाकी पहली शताब्दीमें यह एक उपयोगी स्थान था जब भरोच पश्चिमीय भारतमें व्यापारका मुख्य स्थान था । अलविरुनीने (सन् १०३१ में) लिखा है कि दक्षिण गुजरातकी दो राज्यधानी हैं एक रांदेर ( या राहन जौहर ) दूसरा भरोच । तेरहवीं शताब्दीके प्रारम्भमें अरब सौदागरों और मल्लाहोंके संघने उस समय रांदेर में राज्य करनेवाले जैनियोंपर हमला किया और उनको भगा दिया । तथा उनके मंदिरोंको मसजिदों में बदल लिया । जम्मा मसजिद जैन मंदिरसे बनी है । तथा कोर्टकी भीतें जैन मंदिरकी हैं। करवा या खारवाकी मसजिदमें जो लकड़ीके खम्भे हैं वे जैनियोंके हैं। मियां मसजिद भी असलमें जैन उपासरा था । वालीजीकी मसजिद भी जैन मंदिर कहा जाता है मुन्शीकी मसजिद भी जैन मंदिर था । अब वहां पांच जैन मंदिर पुराने हैं। रांदेरके अरब नायतोंके नामसे दूर दूर देशोंमें यात्रा करते थे । सन् १९१४ में यात्री बारवोसा Barboss वर्णन करता है कि यह रांदेर मूर लोगोंका बहुत धनवान व सुहावना स्थान था जिसमें बहुत बडे २ और सुंदर जहाज थे और सर्व प्रकारका मसाला, दवाई, रेशम, मुश्क आदिमें मलक्का, बङ्गाल, तनसेरी (Tenna serim) पीगू, मर्तवान और सुमात्रासे व्यापार होता था । हमने स्वयं रांदेर जाकर पता लगाया तो ऊपर लिखित मसजिदें जैन मंदि -