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२०६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
इसके एक दूसरे मंत्रीने सिद्धपुरमें प्रसिद्ध जैन मंदिर महाराज भुवन बनवाया उसी समय सिद्धराजने रुद्रमालाका मंदिर सिद्धपुरमें बनवाया । इसको सधारो जैसिंह कहते थे । यह बड़ा बलवान, धार्मिक व दानी था, सोमनाथ महादेवका भी भक्त था । यह मंत्र शास्त्र जानता था इसलिये इसको सिद्ध चक्रवर्ती कहते थे । इसने वर्द्धमानपुर (वधवान) आकर सौराष्ट्र राजा नोधनको विजय किया तथा सोरठदेश लेकर सज्जनको अधिकारी नियत किया ( देखो गिरनार लेख सम्वत ११७६ ) । सज्जनने श्री गिरनारमें नेमिनाथजीका जैन मंदिर बनवाया (लेख सन् ११२०)। सिद्धराज जैनधर्मका भी भक्त था। यह ब्राह्मणोंके भयसे भेष बदलकर श्री से@जयकी यात्राको भी गया था, वहां श्री आदिनाथनीकी भेट १२ ग्राम किये थे ।
सिद्धराजने सिंह संवत चलाया था जो सन् १११३से प्रभास और दक्षिण काठियावाड़के लेखोंमें है । उस समय मालवाका राजा नववर्मन परमार था (११०४-११३३) और उसका पुत्र युवराज यशोर्वमन (११४३) था। सिद्धराज १२ वर्ष तक मालवाके राजासे लड़ा। अंतिम विनय सन् ११३४ में सिद्धराजने पाई तबसे इसका नाम अवन्तिनाथ प्रसिद्ध हुआ। (Ind. Ant. VI 134) दूसरा युद्ध महोबाके चंदेलराजा मदनर्मनसे हुआ, उसमें सिद्धराजने भेट पाकर सन्धि करली । जैनलेखक इसको जैनधर्मी लिखते हैं, परंतु इसकी भक्ति महादेवमें भी थी। इसने सिद्धपुरमें रुद्रमहालय बनवाया तथा पाटनमें सहश्रलिंग नामकी झील बनवाई थी। इसी सिद्धराजके समयमें श्वे० जैनाचार्य हेमचंद्र प्रसिद्ध हुए थे ।