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१९२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । था। ६४९का ताम्रपत्र कहता है कि यह परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर चक्रवर्ती थे। भट्टीकाव्य बल्लभीमें इसीके राज्यमें लिखा गया था। जैसा वाक्य है “काव्यमिदम् रचितम् मया वल्भ्याम् श्री धरसेन नरेन्द्र पालितायाम् " |
(१०) ध्रुवसेन तृ० (६५०-६५६) धरसेन च० के दादाके लड़के देराभटका पुत्र ।
(११) खरग्रह (६५६-६६५ ) भ्राता ध्रुव ।
(१२) शिलादित्य तृ० (६६६-६७५) खरग्रहके बड़े भाई शिलादित्य द्वि०का पुत्र)। (नोट-शि० द्वि०का नाम ऊपर नहीं है)
(१३) शिलादित्य च० (६७५-६९१) पुत्र शि० तृ० (१४) शिलादित्य पं० (६९१-७२२) पुत्र शि० च० (२५) शिलादित्य छ० (७२२-७६०) , शि० पं०
(१६) शिलादित्य सप्तम धुवपद (७६०-६६६)पुत्र शि० छ । अरब लेखकोंने बलहारोंको, चालुक्यों (५००-७५३)को व राष्ट्रकूटों (७९३-९७२)-को जो पूर्व दक्षिणमें मालखेडमें राज्य करते थे-स्वीकार किया है।
प्रोफेसर भंडारकर (Deccan history 565 ) कहते हैं कि पूर्वके कई चालुक्य व राष्ट्रकूट राना वल्लभ कहलाते थे और वल्लारोंके सम्बन्धमें लिखा है कि वे कर्णाटकमें राज्य करते थे, उनकी कनड़ी राज्यधानी मानकिर या मानखेडपर थी जो समुद्र तटसे ६४० मील है । जैनियोंके लेख बताते हैं कि मेवाड़के गोहिल या सेशोदिया लोग काठियावाड़की वाल या वल्लभीसे आए थे तथा अनहिलवाड़ामें (सन् ७४६) उन्होंने अपने गुजरात राज्यका मुख्य