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________________ १६० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक (२) द्रांगिक - नगरका अधिकारी (३) महत्तरि - ग्रामपति (४) चाटभट - पुलिस सिपाही (५) ध्रुव - ग्रामका हिसाब रखनेवाला वंशज अधिकारी तलाटी या कुलकरणी समान (६) अधिकरणिक - मुख्य जज (७) डंडपासिक - मुख्य पुलिस आफिसर । (८) चौरोडर्णिक - चोर पकड़नेवाला । (९) राजस्थानीय - विदेशी राजमंत्री । (१०) अमात्य - मंत्री । (११) अनुत्पन्नादान समुदूग्राहक - पिछला कर वसूल करनेवाला (१२) शौल्किक - चुंगी आफिसर Custom Officer (१३) भोगिक या भोगोद्धर्णिक -आमदनी या कर वसूल करनेवाला (१४) वर्त्मपाल - मार्ग निरीक्षक सवार । (१५) प्रतिसरक - क्षेत्र और ग्रामोंके निरीक्षक । (१६) विषयपति - प्रांतका आफिसर | (१७) राष्ट्रपति - जिलेका आफिसर । (१८) ग्रामकूट - ग्रामका मुखिया । विषयके नीचे आहार (जिला) फिर पथक ( उसका भाग) फिर स्थली (उसका भी भाग ) ऐसे भाग थे । राज्यधर्म अधिकतर शैव था । केवल ध्रुवसेन (५२६ ई०) परमभागवत वैष्णव था । इसका भाई और राज्याधिकारी धरपत्त - परमादित्यभक्त तथा गृहसेन बुद्धके उपासक थे । सब वल्लभी राजा परममहेश्वर कहलाते थे ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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