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________________ १८८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पुत्र नरसिंहगुप्त, फिर उसके पुत्र कुमारगुप्त द्वि० ने राज्य किया । यशोधर्मन - सन १३३ - ३४ मालवाका । इसने मिहिरकुलको हरा दिया था तौ भी ग्वालियरका राजा मिहिरकुल रहा था (यूनानी व्यापारी कोसमस इंडीकोव बुस्तेने सन १२० में उत्तर भारत में इसका राज्य मालूम किया था ) यशोधर्मनका राज्यस्थान मंदसोर था । (देखो - Fleet corps Ins. Ind. III). इसने ब्रह्मपुत्र महेंद्रगिरि तक व हिमालयासे दक्षिणसमुद्र तक विजय किया था । छठी शताब्दी में उज्जैनमें एक प्रसिद्ध वंश राज्य करता था । यशोधर्मन् स्वयं महान विक्रमादित्य था । वल्लभी वंश - (सन् १०९ - ७६६ ) - गुजरातमें गुप्तोंके पीछे वल्लभी वंशने राज्य किया । इनका राज्यस्थान वलेह या वल्लभी था जो भावनगर से पश्चिम २० मील है और शत्रुंजय पर्वतसे उत्तर २५ मील है । श्वे० श्री जिनप्रभसूरिकृत शत्रुंजयकल्प में जो तेरहवीं शताब्दी में लिखा गया था इसका नाम वल्लभी आया है व प्रांतका नाम वलाहक है । (सं० नोट - यहीं ९०० वीर सम्वतमें श्वे ० आचार्य देवर्द्धिगण श्वेतांबरी लोगों में पाए जानेवाले आचारांग आदि अंगों की रचना की थी इसलिए वर्तमान पाए जानेवाले श्वेताम्बरी अंग प्राचीन लिखित मूल अंग नहीं हैं ।) चीन यात्री हुईनसांग सन् ६४० में लिखता है कि इस समय यह एक नगर बड़ा धनवान व जन संख्यासे पूर्ण था । करोड़पति सौ से ऊपर थे (Over hundred merchant sowned 100 lacs ) । ६००० साधुओं के बहुत से संघाश्रम थे । राजा यहांका क्षत्री था जो मालवाके शिलादित्यका
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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