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________________ १८२ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (३) क्षत्रप तृ० जयदमन - सन् १४० से १४३ (४) क्षत्रप च० रुद्रदामन - सन् १४३ से १५८ सिक्केपर है " राज्ञो क्षत्रपस जयदामपुत्रसराज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामन !" इसका जो लेख सुदर्शन झील पर है उससे प्रगट होता है कि रुद्रदामनकी राज्यधानी उज्जैनमें थी तथा ये नीचे लिखे स्थानोंके खामी थे (१) अकरावंती ( पूर्व व पश्चिम मालवा), अनूप (गुजरातके पास), आनर्त, सुराष्ट्र, स्वाभ्रा (उत्तर गुजरात), मारू ( माड़वाड़), रच्छा, सिंधु सौवीर (सिंध और मुलतान), ककुर, अपरांत (उत्तर में माही दक्षिणमें गोआ ) निषाद (देश-पूर्व में मालवा, पश्चिममें सिंध, आबू उत्तरमें, उत्तर कोंकणतक, दक्षिणमें कच्छ और काठियावाड़)। रुद्रदामनने दो युद्ध किये थे, एक यौद्धेयोंसे, दूसरा दक्षिण पथके शतकरणीसे । दोनोंमें विजय पाई । यौद्धेयके सिक्के तीसरी शताब्दीके युक्त प्रांतमें मिले हैं । यह रुद्रदामन बड़ा विद्वान् था । व्याकरण, राज्यनीति, गान, व न्यायशास्त्रमें निपुण था । राजाओंके स्वयम्वरोंमें कई कन्याओंने वरमालाएं डाली थीं। उसको यह प्रतिज्ञा थी कि सिवाय युद्धके कोई मनुष्य किसी मनुष्यको न मारे । उसने सुदर्शन झीलको अपने ही खजानेसे बनवाई व कर नहीं लगाया । ५ - क्षत्रप पंचम दामाजद या दामाजदस्ती सन् - १५८ से १६८ तक । यह रुद्रदामनका पुत्र था । बीच में रुद्रदामनके भाई रुद्रसिंहने भी राज्य किया ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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