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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
जैन मंदिर प्रतिमा श्री शांतिनाथजीकी कृष्ण वर्ण ६ फुट ऊंची कोरी हुई है ।
(८) तेर-धारा शिवसे ८ मील। यहां प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें एक पद्मासन मूर्ति श्री महावीरस्वामीकी उन्हींके मूल आकार में विराजित है अन्य मूर्तियां है व लेख है जो पढ़ा नहीं जाता है । यह ग्राम प्राचीन कालमें तगर नामका नगर था और दक्षिणमें व्यापारका मुख्य स्थान था ऐसा यूनानी लेखकोंने लिखा है पहली शताब्दी तक इस मुख्य नगरका पता है । तथा १० वीं या ११वीं शताब्दीमें भी यह एक बड़ा महत्त्वका स्थान था ऐसा देशी राज्योंके लेखोंसे पता चलता है । यह बारसीसे पूर्व ३० मील है । तर्णा नदीके पश्चिम तटपर है। यहां जो उत्तरेश्वरका मंदिर है वह मूलमें जैन मंदिर था । उसकी कारनिशके नीचे जैन मूर्ति है । यहां बहुत प्राचीन और भी जैन मूर्तियां मिलती हैं । एक पुजारी रहता है । प्रबन्ध धाराशिवके दि० जैन पंचोंके आधीन है । मुख्य भाई सेठ नानचन्द नेमचन्द वालचन्दजी हैं ।
(९) धाराशिव - इसको अब उस्मानाबाद कहते हैं । वारसी लाइनके एडसी स्टेशनसे १४ मीलके करीब । यहां नगरसे २ - ३ मीलपर बहुत पुरानी ७ गुफाएं हैं। एक गुफा बहुत बड़ी है जिसमें श्री पार्श्वनाथजी की मूल अवगाहना की मूर्ति बैठे आसन बहुत सुन्दर सात फणके छत्र सहित बिराजमान है । दूसरी गुफा में भी ऐसी ही मूर्ति है । एक गुफामें मूर्ति खंडित होगई है । ये गुफाएं दर्शनीय हैं । इनको राजा करकंडुने बनवाया था । आराधनाकथाकोष में ११३ वीं (कथा राजा करकंडुकी है । उसमें तेर