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________________ १३० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (२४) उत्तर कनड़ा जिला। उसकी चौहद्दी इस प्रकार है । उत्तरमें बेलगाम, पूर्व धारवाड़, मैसूर; दक्षिणमें मदरास प्रांतीय दक्षिण कनड़ा; पश्चिममें अरब समुद्र ७६ मील रह जाता है । उत्तर-पश्चिम गोआ । यहां ३९४५ वर्ग मील भूमि है । शरवती नदी-होनावरसे पूर्व ३५ मीलके करीब ८२५ फुट ऊंची चट्टानके ऊपरसे गिरती है । यही प्रसिद्ध जरसोप्पा फाल Gorsoppa Fall कहलाता है । इतिहास-यहां सन् ई० के पहले तीसरी शताब्दीमें राजा अशोकने बनवासीको अपना दूत भेजा था। यहां जो बहुतसे शिलालेख मिले हैं उनसे प्रगट है कि यहां वनवास के कादम्बोंने, फिर राहोंने, फिर पश्चिमीय चालुक्योंने फिर यादवोंने क्रमसे राज्य किया । यह बहुत काल तक जैन धर्मका दृढ़ स्थान रह चुका है। It was 'for long a stronghold of Jain . religion. सन् १६००में यह विजयनगरके राजाओंके आधीन था । पुरातत्व-इस निलेमें विशेष महत्वके स्थान बनवासी जरसप्पा, और भटकलके जैन मंदिर हैं । वनवासीका मंदिर जिसके लिये यह प्रसिद्ध है कि यह जाखनाचार्यका बनाया हुआ है, बहुत बड़ा है। इसमें बहुत सुन्दर मूर्तियां व चित्रादि कोरे हुए हैं। इसके आंगनमें एक खुला पत्थर पड़ा है निसमें दूसरी शताब्दीका लेख है। ___ वर्तमान जरसप्पा नगरके पास नगर वस्तीकेरीने कई जैन मंदिर हैं जो इस बातको बताते हैं कि यह एक पुराना नगर था ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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