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________________ वीजापुर जिला। [६१ दि जैन मूर्तियां अखंडित और पूज्य हैं ( परंतु कोई पूजा करनेवाला नहीं ) इस दालानकी छतपर बहुतसे स्वस्तिक बड़ी कारीगरीसे रचे गए हैं । कमलोंके भीतर व बाहर छतपर अपूर्व शोभा है । इस गुफाका नं० ७० है । नीचे ग्राममें वीरुपक्ष मंदिरके सामने तीन दि जैन मंदिर हैं। एकमें श्री पार्श्वनाथजीकी मूर्ति २॥ हाथ पद्मासन अखंडित विराजमान है। यहां एक चरन्ती मठ कहलाता है । यहां कई दि. जैन मंदिर हैं। एक हातेमें ६ मंदिर हैं, एक एक द्वारपर बारहबारह मूर्ति स्थापित हैं-१ वेदीमें २ हाथकी ऊंची मूर्ति है। . " Fergusson cave temqles of India 1880." में यहांकी जैन गुफाका हाल यह दिया है कि वरामदा ३२ फुटसे १७॥ फुट है जिसके चार चौकोर स्तम्भ हैं । इसकी भीतरकी वाई तरफ श्री पार्श्वनाथ फणसहित वादामीके सामान है । दाहनी तरफ श्री बाहुबलि हैं । वेदीका मंदिर ८ फुट ३ इंच चौकोर है यहां एक तीर्थकरकी पल्यंकासन मूर्ति वदामीके समान है । बीचके कमरेमें श्री महावीर स्वामी हैं और दूसरी मूर्तियां हैं व हाथी हैं जो उनके नमस्कार करनेको आए हैं । यहांपर अवश्य कोई ऐतिहासिक घटना है। “ Archealojical survey report 1907-8 ” में यहांके मेघुती दि. जैन मंदिरका वर्णन इस भांति दिया है जो जानने योग्य है ऐहोल एक प्राचीन नगर है। बादामी ष्टेशनसे १४ मील व कटगेरीसे १०-१२ मील है। यह तेरह शताब्दियों तक
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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