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८६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । घदेव थे जो गणधरके समान थे (४) कालसेन राजाने सुगंधवर्तिमें जिनेन्द्र मंदिर बनवाया था ।(४) शांतिवर्मा राजाने शाका ९०२में आचार्य बाहुबलिदेवके चरणोंमें सुगन्धवर्तिके जैन मंदिरोंके लिये १५० मत्तर भूमि दी। यह बाहुबलि व्याकरणाचाय थे उस समय श्री रविचन्द्रस्वामी, अर्हनन्दी, शुभचन्द्र भट्टारकदेव, मौनीदेव, प्रभाचन्द्रदेव मुनिगण विद्यमान थे (५) भुवनैकमल्ल चालुक्य वंशीय सत्याश्रयके राज्यमें लट्टलूरपुरके महा मंडलेश्वर कार्तवीर्य द्वि० सेन प्रथमके पुत्र थे तब मुनि रविचन्द्रस्वामी व अरहनंदी मौजूद थे (६) राजा कत्तम्की स्त्री पद्मलादेवी जैनधर्मके ज्ञान व श्रद्धानमें इन्द्राणीके समान थी जिसका पुत्र लक्ष्मण था जो मल्लिर्काजुन
और कार्तवीर्यका पिता था (७) सौंदत्तीके ( वें लेखमें जो चालुक्य विक्रमके १२ वें वर्ष राज्यमें लिखा गया आचार्योंके नाम दिये हैं बलात्कारगण मुनि गुणचन्द-शिष्य नयनंदि, शिष्य श्रीधराचार्य, शिष्य चन्द्रकीर्ति, शिष्य श्रीधरदेव, शिष्य नेमिचन्द्र और वासुपूज्य विद्यदेव, वासुपूज्यके लघुभ्राता मुनि विद्वान मलयाल थे वासुपूज्य के शिष्य सर्वोत्तम साधु पद्मप्रभ थे । सोरिंगका वंशका निधियामी गुरु वासुपूज्यका सेवक था।
(१५) तावन्दी-बेलगाम-कोल्हापुर रोड़पर एक ग्राम चिकोडीके दक्षिण पश्चिम १५ मील । एक छोटा जैन मंदिर भरमप्पाके नामसे है । यहां कार्तिकमें एक मेला होता है तब करीब १००० जैनी एकत्र होते हैं।
(१६) कोकतनूर ता० अथनी-अथनीसे पूर्व दक्षिण १० मील, वीजापुरसे ४५ मील यहां एक प्राचीन स्वच्छ जैन मंदिर है।