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जैन धर्म का प्रचार
इस मशीन को चलाने वाले हुए भी थे पर वे बहुत थोड़े हुए जिस प्रान्त में वे विचरते वहाँ ही उन्होंने थोड़े बहुत नये जैन
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पर दूर दूर प्रान्तों में वे भी नहीं पहुँच सके जिसका फल यह हुआ कि वे प्रान्त जैनधर्म निर्वासित बन गये हजारों जैनालय शिवालय के रूप में परिवर्तन हो गये । इसी कारण जैन संख्या वेग से घटने लगी और आज केवल नाम मात्र की संख्या रह गई ।
यह कहना सोलह आने सत्य है कि जिस धर्म के उपदेशकों का विहार क्षेत्र विशाल है उनका धर्म भी विशाल क्षेत्र से प्रसरित होता है जहाँ विहार क्षेत्र की संकुचितता है उनका धर्म कभी दुनियाँ में नहीं फैलता है आज हम मुसलमानों और क्रिश्चीनियों के धर्म प्रचारकों की ओर देखते हैं तो उन्होंने करोड़ों मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित कर लिये हैं और बुद्धधर्म का भारत में नाम निशान तक नहीं रहा था केवल पुस्तकों में ही उनका नाम था उन्होंने भी आज भारत में मशीनें खोल दीं और रफ़्तार से धर्म प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया है जब हमारे धर्म नेताओं ने अभी तक कुम्भकरणी निंद्रा में ही अपने जीवन की सफलता समझ रक्खी है जब विश्व में चारों ओर उन्नति के डंके बज रहे हैं धर्म प्रचार हो रहा हैं तब एक जैन समाज ही ऐसी है कि दुनियाँ की धाड़े में पीछे रही है जैन कौम में दिगम्बर तो फिर भी कुछ कर रहे हैं उन्होंने यूरोप तक अपनी आवाज पहुँचाई हैं स्थानकवासी तेरहपन्थी आगे तो नहीं बढ़े पर मूर्ति पूजकों को हड़पने का पूरे जोश से यत्न अवश्य कर रहे हैं पर एक मूर्तिपूजक समाज ही ऐसी है कि जिनके उपदेशक एकाद प्रान्त को छोड़ अन्यत्र विहार करना मानो अपने व्रत के बाहर की बात समझ रहे हैं तथापि वे उन्नति के शब्द से बाहर नहीं है कारण आज पद्वियों की आपसी क्लेश कदागृह की इस समाज ने काफी उन्नति करली