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प्रा० ० इ० तीसरा भाग
वीरता सुनकर मथुरा से ही वापस लौट गया। खारवेल ने मगध से बहुत-सा द्रव्य लूट कर कलिंग में एकत्रित किया । उसने धन भी लूटा और वहाँ के राजा पुष्पमंत्री को अपने कदमों में झुकाया । जो मूर्ति नदराजा कलिंग से ले गया था वह मूर्ति खारवेल वापस ले आया। इसके अतिरिक्त कुमार पर्वत पर प्राचीन समय में श्रेणिक नृप द्वारा निर्माणित ऋषभदेव भगवान के भव्य मन्दिर का जीर्णोद्धार भी इसने कराया । इसी मन्दिर में वह मूर्ति आचार्य श्री सुस्थितसूरी के करकमलों से प्रतिष्ठित कराई गई । इस कुमार कुमारी पर्वत पर अनेक महात्माओं ने अनशन द्वारा आत्मकल्याण करते हुए देह त्याग किया, इससे इस पर्वत का नाम शत्रुञ्जयावतार प्रख्यात हुआ।
. .सचमुच खारवेल नृपति को जैन धर्म के प्रचार की उत्कट लगन थी। वह चाहता ही नहीं किन्तु हार्दिक प्रयत्न भी करता था कि सारे संसार में जैन धर्म का प्रचार हो । उसकी यह उच्च अभि लाषा थी कि जैन धर्म का देदीप्यमान झंडा सारे संसार भरमें फहरे । किन्तु कार्यक्षेत्र सरल भी न था क्योंकि भगवान महावीर स्वामी कथित आगम भी लोप हो रहे थे जिसका तत्कालीन कारण दुष्काल का होना था अनेक मुनिराज दृष्टिवाद, जैसे अगाध आगमों को विस्मृति द्वारा दुनियां से दूर कर रहे थे। ऐसे आपत्ति के समय में आवश्यक्ता भी इस बात की थी कि कोई महा. पुरुष. आगमों के उद्धार का कार्य अपने हाथ में ले।