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कलिङ्ग देश का इतिहास
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बुद्धराय ने अपनी शेष आयु बड़ी शान्ति से कुमारिगिरि के पवित्र तीर्थ स्थान पर निवृत्ति मार्ग से बिता कर समाधिमरण को प्राप्त कर स्वर्गधाम सिधाया। ..
ई. स. १७३ पूर्व महाराजा भिक्षुराज सिंहासनारूढ़ हुआ। यह चेत (चैत) वंशीय कुलीन वीर नृप था। आपके पूर्वजों से ही वंश में महामेघवाहन की उपाधि उपार्जित की हुई थी। इनका दूसरा नाम खारवेल भी था। ___ महाराजा खारवेल बड़ा ही पराक्रमी राजा था। वह केवल जैन धर्म का उपासक ही नहीं वरन् अद्वितीय प्रचारक भी था। बह अपनी प्रजा को अपने पुत्र की नाई पालताथा। सार्वजनिक कामों में खारवेल बड़ी अभिरुचि रखता था । इसने अनेक कूए, तालाब, पथिकाश्रम, औषधालय, बाग और बगीचे बनाए थे। कलिंग देश में जल के कष्ट को मिटाने के लिए मगध देश से नहर मंगाने में भी खारवेल ने प्रचुर द्रव्य व्यय किया । पुराने कोट, किले, मन्दिर, गुफाएँ और महलों का जीर्णोद्धार कराने में भी खारवेल ने खूब धन लगाया था । दक्षिण से लेकर उत्तर तक विजय करते हुए उसने अन्त में मगध पर चढ़ाई की। उस समय मगध के सिंहासन पर महा बलवान् पुष्प मंत्री (वृहस्पति) आरोहित था। उसने अश्वमेध यज्ञ कर चक्रवर्ती राजा बनने की तैयारी की थी। पर खारवेल के आक्रमण से उसका मद चूर्ण हो गया । मगध देश की दशा दयनीय हो गई। यवन राजा डिमित आक्रमण करने के लिए आया था पर खारवेल की