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प्रा० ० इ० तीसरी भाग
(७) माफ किये वैसे ही अनेक लाखों अनुग्रहों पौर जनपद को बक्सीष किये । सातवें वर्ष में राज्य करते श्राप की महारानी बनधरवाली धूषिता ( Demetrios) ने मातृपदे को प्राप्त किया (१) (कुमार १)......आठवें वर्ष में महा + + + सेना....."गोरधगिरि
(८) को तोड़ कर के राजगृह (नगर) को घेर लिया जिसके कार्यों से अवदात (वीर कथाओं का संनाद से युनानी राजा ( यवन राजा) डिमित (
अपनी सेना और छकड़े एकत्र कर मथुरा में छोड़ के पीछा लौट गया ....."नौवें वर्ष में (वह श्री खारवेलने) दिये हैं............ पल्लव पूर्ण
(८) कल्पवृक्षो! अश्व हस्ती रथों ( उनको ) चलाने वालों के साथ वैसे ही मकानों और शालाओं अग्निकुण्डों के साथ यह सब स्वीकार करने के लिये ब्राह्मणों को जागीरें भी दीं अर्हत का ..."
(१०) राजभवन रूप महाविजय (नाम का) प्रासाद उसने अड़तीस लाख (पण) से बनवाया। दसवें वर्ष में दंड, संधी साम प्रधान ( उसने) भूमि विजय करने के लिये भारत वर्ष में प्रस्थान किया... "जिन्हों के ऊपर (आपने ) चढ़ाई करी उन से मणिरत्न वगैरह प्राप्त किये।
(११)....."(ग्यारहवें वर्ष में) (किसी) बुगराजा ने बनवाया मेड (मडिलाबाजार) को बड़े गदहों से हलसे खुदवा