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जैन राजाओं का इतिहास
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( क ) महाराष्ट्र प्रान्त में सरकारी पुरातत्त्व विभाग की सोध एवं खोज से ऐतिहासिक सामग्री - शिलालेख, ताम्रपत्र, दानपत्र, गुफालेख, मन्दिर मूर्तियों लेख, और प्राचीन स्मारकों से मालुम होता है कि विक्रम की पाचवी शताब्दी से दशवी शताब्दी तक इस प्रान्त में जैन नृपतियों ने जैनधर्म का जोरों से प्रचार कर जैनधर्म को राष्ट्रीय धर्म बना के उन्नति के उच्चे सिक्खर पर पहुँचा दिया था जिसका सम्पूर्ण इतिहास तो एक स्वतन्त्र वृहत् ग्रन्थ में लिखा जायगा यहाँ केवल नामोल्लेख कर दिया जाता है ।
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(६७) राष्ट्र कूट वंश के भूपति जैनधर्म के उपासक ही नहीं पर प्रचारक थे ।
( ६८ ) चालुक्यवंशी नृपति जैनधर्म के पालक थे जिसमें प्रथम पुलकेशी राजा का नाम विशेष प्रसिद्ध है ।
( ६९ ) कलचूरी वंश के जिसमें महाराजा विज्जलदेव का
बहुत राजा जैनधर्मोपासक थे नाम अग्रेश्वर है ।
( ७० ) पल्लववंशी नृपति जैन धर्म के परमोपासक थे जिसमें महाराजा महेन्द्रवर्मा का नाम मशहूर है ।
( ७१) होयलवंश के अनेक राजाओं ने जैन धर्म का पालन किया ।
( ७२ ) कदम्बवंशी राजा जैनधर्म के पक्के अनुयायी थे । ( ७३ ) गंगवंशीय नृपति जैनधर्म के प्रचारक थे । (७४) पाड्यवंशी राजा जैनधर्म के अराधक थे । ( ७५ ) चोलवंश के भूपति भी जैनधर्मी थे ।
"प्राचीन जैन स्मारक नामक ग्रंथ से"