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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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(६५) हस्तीकुँडी नगरी का राजा विदग्धराज
जैन राजा गोडवाड प्रान्त का विजापुर ग्राम से एक शिलालेख मिला है जिसमें लिखा है कि हस्तीकुंडी नगरी का राष्टकुट राजा विदग्धराज ने जैनाचार्य वासुदेव सूरि के उपदेश से जिनेश्वर का मन्दिर बनवाके उनके निर्वाहार्थ कई प्रकार की लागें लगवा के
आमन्द का मार्ग सरल बनाया इसका समय शिला लेख में वि० सं० ९७३ का बतलाया है।
प्राचीन लेख संग्रह भाग दूसरा" (६६) हस्तीकुंडी नगरी का राजा धवल-जैनराजा
महाराजा विदग्धराजा का पुत्र मम्भट हुआ उसने जैन मंदिर को लागन का समर्थन किया। मम्मट का पुत्र राजा धवल हुआ इसने अपने पितामह के बनाया हुआ जिनमन्दिर का जीर्णोद्धार करवाके उसके अन्दर भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति स्थापन कर पुनः प्रतिष्ठा करवाई। नया मन्दिरजी की आमन्द में और भी वृद्धि करवाई इसका समय वि० सं० १०५३ का उस समय के शिला लेख से विदित होता है। राजा विदग्धराज, मम्मट और धवल एवं तीनों नपतियों ने जैन धर्म की खूव प्रभावन्न की हथुडी नगरी में जैनाचार्यों ने अनेक राजपुतों को प्रतिबोध देकर जैन बनाये आज भी वाली सादड़ी शिवगंजादि ग्रामों में हथुडी राठौड़ (ओसवालों में एक जाति ) की बहुत बस्ती हैं ।
"प्राचीन शिला लेख संग्रह भाग दूसरा"