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जैन राजाओं का इतिहास उपासक बनाया। इस भूपति ने जैन धर्म का खूब प्रचार किया धर्म कार्यों में पुष्कल द्रव्य खर्च किया।
"प्रभाविक चरित्र" (६४) मंडोर का महाराजा कक्कुक-जैन राजा
प्रतिहार बंशी राजा कक्कुक का एक शिला लेख प्राम घटियाल से मिला है जिसकी भाषा-प्राकृत है पुरातत्त्व वेता पं० रामकरणजी ने अनुवादकर स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मारवाड़ में यह लेख सबसे प्राचीन है यह नृपति जैन धर्मोपासक था और इसने एक जिन मन्दिर बनवा के धनेश्वर गच्छ वालो को अर्पण किया था ऐसा शिला लेख में उल्लेख किया है शिला लेख का समय वि० सं० ९१८ चेत्र शुक्ल द्वितीया का है ।
"वरिस सरासु अ नवसुं। भट्टारस मग लेसु चेताम्मि । णक्खत्ते वहुहत्थे बुहवार धवल बी आए (१९)" ।
xx "तेस सिरि कक्कुएणं , जिणस्स देवस्स दुरिअणिछलणं । करा वि अं अचल मिमं, भवण भत्तीए सुह जणयं (२२)" xx
__“अप्पि अमेअं भवणसिद्धस्स धणेसर गच्छमि"
इस शिला लेख के अवतर्गों से स्पृष्ट होता है कि महाराज कक्कुक जैन राजा था और जिन मन्दिर बनवा के धनेश्वर गच्छ वालों को अर्पण किया था।
"राजपूताना के जैन वीर से"