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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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(७६) एलाचीपुर के महाराजा एलक-जैनराजा . इस नृपति ने आन्तरिक पार्श्वनाथ की मूर्ति को स्थापन की थी और जैनधर्म की प्रभावना करने में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था।
___ "प्रगट प्रभाविक पाश्वनाथ नामक ग्रंथ" (७७) पाटण का राजा चमँडराय-जैनराजा पाटण का राजा चमूंड राय प्राचार्य वीरगरणी का परम भक्त था
"प्रभाविक चरित्र"
(७८) धारानगरो का राजा भोज-जैनराजा
धारानगरी का राजा भोज महान् विद्वान् थे और विद्वानों का खुब सत्कार किया करते थे, कवि धनपाल के संसर्ग से वे जैनधर्म के साथ पूर्ण सहानुभूति रखते ही थे पर एक समय वादी वेताल शान्तिसूरि विहार करते धारानगरी पधारे । आचार्य श्री यों तो प्रत्येक विषयके व भारी विद्वान थे पर श्रापकी कवित्व शक्ति इतनी अलौकिक थी कि जिसके प्रभाव से राजा भोज और उन की सभा के पण्डितों को मुग्ध वना दिये थे । राजा भोज अपनी कवित्वं शक्ति से प्रसन्न हो एक लाख मुद्राएं उपहार में दी आचार्य श्री त्यागी होने के कारण उसे स्वयं स्वीकार न कर जैन मन्दिरों के कार्य में लगा देने का उपदेश दिया और राजा ने स्वीकार भी कर लिया।
"प्रभाबिक चरित्र"