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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
४८ भगवान ऋषभदेव का एक मन्दिर बनवा के पून्यो पार्जन किया।
"कवलयमाल कथा" (४७) वेलापर पहन का राजा अरिमर्दन-जैनराजा ___ श्रीमान् लोहिन्याचार्य ने वेलापुर पट्टन पधार कर राजा अरिमर्दन को प्रतिबोध देकर जैन बनाया।
पट्टावलि" (४८) बनारस का राजा हर्षदेव-जैनराजा
आचार्य मानतुंगसूरि भ्रमण करते एक बख्त बनारस पधारे वहाँ वेदान्तियों का बड़ा जोर था और वे लोग भिन्न २ चमत्कारों द्वारा राजा और नागरिकों को अपने बस में कर रखे थे। राजा को यह समझा दिया कि इस समय हमारे सिवाय किसी दर्शन में चमत्कार नहीं है । मानतुंगसूरि भी अलौकिक चमत्कारी थे। जैन संघ ने राजा से अर्ज करी कि एक जैनाचार्य यहाँ पर आए हैं और वह बड़े ही चमत्कारी हैं । गजा ने सूरिजी को राजसभा में बुलाया और उनकी परीक्षा के लिए उनके हाथों पैरों में कड़िये डाल के एक गर्भ कोटड़ी में बन्ध कर ४४ ताले लगा दिये । मानतुंग सूरि ने उस बन्दी खाने में रहकर भक्तामर नामक स्तोत्र द्वारा भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करो-ज्यों-त्यों स्तोत्र के एकेक श्लोक पढ़ते गये त्यों-त्यों एकेक ताला तुटता गया आखिर उनके हाथों पैरों की बेड़िये तुट गई और राज सभा में श्रा पहुँचे । यह चमत्कार देख राजा प्रजा को बड़ा ही आश्चर्य हुश्रा । तत्पश्चात् श्राचार्य श्री जैन धर्म के तत्व ज्ञान का उपदेश दिया । राजादिक ने जैन धर्म को स्वीकार करके श्रद्धा पूर्वक पालन करने लगे।
"प्रभाविक चारित्र"