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जैन राजाओं का इतिहास. (४५) कन्याकुब्जदेश का राजा चित्रगेंद
जैन राजा .. आचार्य देवगुप्त सूरि बिहार करते एक समय कन्याकुब्जदेश में पधारे, वहाँ का राजा चित्रगेंद ने आचार्यश्री का अच्छा स्वागत् किया। और आचार्यश्री की विद्वता देख बहुत प्रसन्न हुवा हमेशा राज सभा में बुला के जैनधर्म के तत्वों को श्रद्धा पूर्वक सुनता रहा। राजा की अभिरुचि जैनधर्म की ओर झूकने लगी आचार्यदेव ने उसे जैनधर्म की शिक्षा दीक्षा दी। राजा ने आत्म कल्यानार्थ भगवान महावीर का मन्दिर बनवा के उसमें सुवर्ण की विशाल मूर्ति स्थापन कर आचार्य देवगुप्त सूरि से प्रतिष्ठा करवाई *
"उपकेश गच्छ चारित्र"
( ४६ ) भिन्नमाल का हुन्नवंशी तोरमिण राजा
आचार्य हरिगुप्तसूरि ने हुन्नवंशी नृपति तोरमिण को उपदेश देकर जैनधर्म का अनुरागी बनाया और उसने भिन्नमालनगर में
* तदत्वयं देवगुप्ताचार्य यैः प्रतिबोधितः । श्री कन्य कुब्ज देशस्य स्वामि चित्रागंदा भिधः । स्व राजधानी नगरे स्वर्ण बिम्ब समन्वितं । यो कारय जिनगृह देवगुप्तप्रतिष्ठितं ।
-(उ. चा. लोक ८५,८६