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जैन राजाओं का इतिहास
(४६) मरुकोटनगर का महाराजा काकू-जैनराजा
श्राचार्य श्री कक्कसूरि एक समय विहार करते हुए मरूकोट नगर में पदार्पण किया। उस नगर का महान् बली काकू नामक राजा अपने पुराने किल्ले का जीर्णों द्धार करवा रहा था खोद काम करते हुए को भूमि से भगवान नेमिनाथ की एक विशाल मूर्ति निकल आई । मूर्ति मनोहर एवं चमत्कारी थी, जव इस वात का पता आचार्य देव को मिला तो श्राप श्रावक वर्ग के साथ दर्शनार्थ किल्ला में पधारे। उस अवसर पर राजा ने प्रश्न किया कि हे पूज्यवर ! यह निमित्त मेरे लिये कैसा है ? आचार्यदेव ने फरमाया कि इससे अधिक शौभाग्य क्या हो सकता है कि जिनके . वहाँ साक्षात् परमेश्वर का प्रतिबिम्ब प्रगट हुआ हो। यह सुन कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। श्रावक लोग राजा से मूर्ति की याचना की कि हम लोग इस मूर्ति के लिये नया मन्दिर बनाके प्रतिष्टा करावेंगे। राजा इन्कार कर दिया और जिन भक्ति में अनुराग रखता हुआ अपने ही द्रव्य से किल्ला में विशाल जिनालय बनवाया और आचार्यकक्कसूरि के कर कमलों से बड़े ही समारोह से प्रतिष्ठा करवाई । राजा अहिंसा परमो धर्म का पक्का अनुयायी बनके जैन धर्म का प्रचार करने में सफलता प्राप्त करी प्राचार्य कक्कसरि के उपदेश से राजा के साथ वहाँ के ४००० घरों वालों ने भी जैन धर्म स्वीकार कर रुचि के साथ उसका पालन किया । *
* अथ श्री विक्रमादित्यात् पञ्चवर्ष शतैर्यतैः ।।
साधिकैः श्री ककसूरि गुरु रासी द्गुणोत्तर ॥