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________________ जैन गजाओं का इतिहास कि उसने शिकार का त्याग कर आचार्यश्री को अपने नगर में ले गये-और सूरीश्वरजी ने वहाँ के महाराजा रुद्राटादि नागरिक लोगों .को प्रतिबोध देकर जैन बनाये। इतना ही नहीं पर राजकुमार कक ने आचार्य श्री के चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा स्वीकार कर अपनी जननी जन्म भूमि का उद्धार किया। उस प्रान्त में मेदनी जिनालयों से मंडित करवादी । मुनि ककदेव को योग्य समझ प्राचार्यदेव ने अपने पट्टपर आचार्य पद से विभूषित किया । सिन्ध प्रान्त में जैन-धर्म का खूब प्रचार हुआ । विक्रम की तेरहवी शताब्दी तक केवल उपकेश गच्छ के श्रावकों की देख रेख में ५०० जैन मन्दिर विद्यमान थे। श्रीमान् लुणाशाह जैसे धनी मानी उस प्रान्त में बसते थे। पर खेद है कि मुसलमानों की जुल्मी सत्ता के कारण सिंध प्रान्त आज जैनों से निर्वासित देखाई दे रही है । क्या जैनाचार्य यह साहस कर सकते हैं कि वे ऐसे प्रांतों में विहार कर पुनः जैन संस्कृति का प्रचार करें ? "उपकेश गच्छ पट्टावली" 8 तानू चेथ कक्कसूरि सिन्धु देशे मया सह । आगच्छ तय तस्तत्र किं कर्ता सौ नरेश्वः ॥ १४४ ॥ यस्य देव गृहस्येछा द्वेछावापिय स्पतां । पूरये तत्रय देव गृह पंचशती ममः ॥ ४४५ ॥ श्रावका अथ संख्या ताश्चल तातोजटि त्यापि । सक्लेश कारक स्थान दूरतः. परिवर्जयेत् ॥ ४४६ ॥ "उपकेश गछ चरित्र
SR No.007288
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1936
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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