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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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आपकी कई पीढ़ियें जैन-धर्म का पालन करती हुई बड़ी योग्यता से राजतंत्र चलाया।
“कोरंट गच्छीय श्री पूज्य अजिन सूरी की एक बही से" (७) शिव नगर का महाराजा रुद्राट-जैनराजा
प्राचार्य रत्नप्रभसूरी के पट्टधर आचार्य यक्षदेव सूरी ने एक समय विचार किया कि हमारे पूज्य महर्षियों ने नये २ प्रान्तों में अजैनों को जैन बनाया तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं है कि मैं भी किसी प्रान्त में जाकर नये जैन बनाऊँ ? मरुधर के पास ही सिंध प्रान्त था और वहाँ प्रचूरता से जीव हिंसा भी हो रही थी
आचार्य यक्षदेव सूरि अपने शिष्य मंडल के साथ सिंध की ओर बिहार किया, पर यह कार्य साधारण नहीं था। उन पाखण्डियों के साम्राज्य के बीच में जाकर सत्य मार्ग का उपदेश करनामानों टेढ़ी खीर थी । तथापि आत्मापण करने वालों के लिये कुछ कठिन भी नहीं था । आचार्य श्री को बिहार में अनेकोनेक कठि.. नाईयों का सामाना करना पड़ा। उस समय उस प्रान्त में शिवनाम का नगर वाममार्गियों का केन्द्र माना जाता था, वहाँ का शासन कर्ता महाराज रुद्राट था, आपके कक्क नाम के एक. कुमार भी थे और वह एक दिन अपने साथियों के साथ शिकार करने को जा रहे थे, जिसके भय के मारे बनचर पशु जीव बचाने की गरज से इधर-उधर भाग रहे थे। उसी समय आचार्य यक्ष देवसूरि भ्रमन करते वहाँ आ निकले और उन पशुओं की अनुकम्पा लाकर जाते हुए राजकुमार को रोका और अहिंसा परमोधर्मः का उपदेश दिया जिसका राजकुमार पर इतना प्रभाव पड़ा