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जैन राजाओंका इतिहास अपभ्रंश ही श्रोसवाल है। आज श्रीमाल पोरवाल और ओसवाल जातियाँ परम्परा से जैनधर्म पालन करती आई हैं वह प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि और प्राचार्य रत्नप्रभसरि का ही उपकार का सुन्दर फल है। महाराजा उत्पलदेव के बाद सारंगदेव, नागुदेव आदि २८ पीढ़ी तक उपकेशपुर में राज करते हुए जैन धर्म की वृद्धि की । उनका रोटी बेटी व्यवहार अजैन गजपूतों के साथ भी था कि जिससे वे जैन धर्म का प्रचार करने में सफलता प्राप्त करली थी।
"उपकेशगच्छ पट्टावलि" (६) कोलापुर पट्टन (कोरंटो) का राजा कनकसेन
'जैन राजा' श्राचार्य रत्नप्रभसूरि की आज्ञा लेकर उपकेशपुर से ४६५ मुनियों ने विहार किया था जिसमें मुख्य मुनि कनकप्रभ थे उन्होंने कोलापुर पट्टन ( कोरंटा) में चातुर्मास किया वहाँ का राजा कनकसेन को धर्मोपदेश देकर उनके साथ बहुत से अजैनों को शुद्धि द्वारा जैन-धम की शिक्षा दीक्षा दे जैन बनाया । वहाँ के भावुकों ने भगवान महावीर का एक विशाल मन्दिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य रत्नप्रभसूरी के करकमलों से हुई जो उपकेशपुर के महावीर मन्दिर की प्रतिष्टा का लग्न में आचार्य श्री ने दो रूप बना के एक उपकेशपुर दूसरा कोलापुर में प्रतिष्ठा करवाई थी महाराजा कनकसेन ने जैन धर्म का खूब प्रचार किया
® कोरंटा नगर बहुत प्राचीन है जिसके उल्लेख प्रभाविक चारित्र व कल्पसूत्र की टीकाए में मिलते हैं वह हम फिर आगेके भागों में लिखेंगे।