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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
लाखों की संख्या में जैन धर्म को स्वीकार कर सूरिजी के परमोपासक बन गये । पट्टावलियों से विदित होता है कि प्राचार्य रत्नप्रभसूरि उस प्रान्त में घूम के ३८४००० घरों को जैन बना के उनका नाम 'महाजन वंश' रखा। ___ उस समय उन आचार्यों की यह भी पद्धति थी कि जहां नये जैन बनाये वहां अनेक ग्रंथों की रचना उनके पठन पाठन के लिये विद्यालयों और सेवा-पूजा के लिये, जैन मन्दिरों की स्थापना : करवाया करते थे और इन बातों की उनको परम आवश्यकता
भी थी और उन लोगों की सन्तान आज पर्यन्त जैन धर्म पालन करती है यह सब उन महर्षियों की सुन्दर पद्धति का ही मधुर फल है । प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि ने श्रीमाल, पदमावती, चन्द्रावती, शिवपुरी श्रादि अनेक नगरों में तथा प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर तथा उसके आस पास में अनेक जैन मन्दिरों, जैन विद्यालयों की स्थापना व प्रतिष्ठा करवाई। उनके अन्दर से कतिपय स्थान तो ओज पर्यन्त विद्यमान हैं। प्राचार्य रत्मप्रभसूरि के प्रतियोधित नूतन जैनों में महाराज उत्पलदेव मुख्य थे। यह घटना उपकेशपुर में वीरात् ७० वर्ष में बनो। आगे चल कर उस महाजन वंश का ही नाम उपकेश वंश हुवा और उपकेश वंश का.
१-आचार्यरत्नप्रभसूरि का एक शिष्य के साथ आना, भिक्षा न मिलने 'पर भारी काट के लाना, रूई का सर्प बना के राजपुन को कटाना, फिर विष उतारके जैन बनाना इत्यादि बातें अज्ञ लोग कहा करते हैं पर यह सब निराधार गप्पें हो हैं इस विषय में देखो मेरा लिखा “जैन जाति महोदय प्रथम खण्ड” । .