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का कट्टर प्रचारक था ।
जैन राजाओं का इतिहास
"उपकेशगच्छ पट्टावली""
(५) उपकेशपुर का महाराजा उत्पलदेव - जैनराजा
मारवाड़ की मुख्य राजधानी और वाममार्गियों का केन्द्र स्थल उपकेशपुर था । यहाँ के शासन कर्त्ता महाराजाधिराज उत्पलदेव थे । आचार्य स्वयंप्रभसूरि के पट्टधर महाप्रभाविक स्वनामधन्य आचार्य रत्नप्रभसूरि जो आप विद्याधर कुल भूषण' थे अनेक विद्याओं के पारगामी और चतुर्दश पूर्वधारी भी थे । ५०० मुनियों के परिवार से अनेक कठिनाइयों व उपसर्ग को सहन करते हुए उपकेशपुर में पधारे । पर आप किसके महमान ? कौन आपका स्वागत करें ? कहाँ अन्न जल मकानादि ? पर जिन्हों के हृदय में धर्म प्रचार की धगास हो उन्हों को पूर्वोक्त साधनों की क्या परवाह ? आचार्य देव ने अरण्य में ध्यान लगा दिया और हमेशा तप वृद्धि होती रही। कई मुनियों के तपश्चर्य का पारण आने पर नगर में भिक्षा के लिये गये पर ऐसा कोई घर न पाया कि जिसके घर की जैन साधु भिक्षा ले सके, कारण उस नगर में सर्वत्र मांस मदिरा का प्रचार प्रत्येक घर में था, मुनि जैसे गये थे वैसे ही वापिस लौट आए पर आपकी कठोर तपश्चर्या का प्रभाव नागरिकों पर ही नहीं वरन् वहाँ की अधिष्टायका चामुण्डा देवी पर भी काफ़ी पड़ा। अर्थात् मंत्री पुत्र को सर्प काटना और चामूण्डा देवी का चम-त्कार दिखाना, सूरीश्वरजी के कार्य में निमित्त कारण हुए, राजा प्रजा ने सत्य धर्म सुना और मिथ्या मार्ग का त्याग कर
राजा के जमाई.