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पाटलीपुर का इतिहास ततस्तै भद्रका जातः । साधूनम देशनाश्रुतेः । तत् प्रभृत्येव ते सर्वे । निशीथेऽपि यथोहितम् ॥ १७६ ॥ एवं सम्पति राजेन । यतिनां संपवर्तितः । विहारोऽनार्यदेशेषु । शासनोन्नतिमिच्छता ॥१७७ ॥
____ "नक्तस्वभाष्ये" समण भउ भाविएसुतेर्मु देसेसुएसणा इहि । सोहु सुहं विहारियां तेणते भद्दया जाया ॥
.. (निशीथचूर्णि) . महाराजा सम्प्रति ने सुयोग्य पुरुषों को चुनकर उन्हें साधुओं के आचार और व्यवहार से परिचित किये। जब वे पूरी तरह से जैन मुनि के कर्त्तव्य कम्मों को सीख गये तो राजा ने उन्हें मुनियों का वेष भी पहिनवा दिया। इस तरह से अनार्य देश को मुनिविहार के योग्य बनाने के हित ही इन नकली साधुत्रों को सम्प्रति नरेश ने अनार्य देश में भेज दिये। साथ ही कुछ योद्धाओं को भी भेज दिया ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर सहायता पहुँचा सकें। मुनिवेषधारी पुरुषों ने जाकर अनार्य देश में जैन तत्वों का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को जैन मुनियों के प्राचार
और व्यवहार की बातों का विशेष विवेचन सहित उपदेश दिया। इस प्रकार से प्रयत्न करने पर जैन मुनियों के मार्ग में आनेवाली अनेक बाधाएँ दूर होती रहीं।
- जब जैन मुनियों के विहार करने के योग्य अनार्यदेश भी हो गया तो सम्प्रति नरेशने प्राचार्य सुहम्ति सूरि और मुनियों से विनंती की कि अब आप उस क्षेत्र में पधार कर अनार्यदेश के लोगों में जैन धर्म का प्रचार कीजिये। आचार्य श्री की