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पाटलीपुर का इतिहास.
महाराजा श्रेणिक बौद्ध अवस्था में अधोगति का आयुष्य बांध चुके थे अतः वे
शिकार करते समय: स्वयं तो दीक्षा नहीं किन्तु जो कोई दूसरा दीक्षा लेना चाहता था ता उसे वे रोकते नहीं थे वरन् उसे सहयोग कर उसका उत्साह द्विगुणित करने में कभी नहीं चूकते थे । इस सुविधा को देख कर राजा श्रोणिक के पुत्र तथा प्रपुत्र जालीकुमार, मयाली, उवायाली, पुरुषसेन, महासेन, मेधकुमार, हल, विहल और नन्दीसेन आदि ने एवम् नन्दा, महान्दा, सुनन्दा और काली, सुकाली आदि रानियों ने भगवान् महावीर प्रभु के पास दीक्षा ली। इस प्रकार जैनधर्म का उत्थान श्रेणिक के शासनकाल में खूब हुआ । महाराजा श्रेणिक के बाद मगध का राज्यमुकुट श्रेणिक से उतर कर उसके पुत्र कौणिक के सिर पर चमकने लगा । वह बड़ा ही वीर था । कौणिक राजा ने अपनी राजधानी चम्पा नगरी: में कायम की । बौद्ध ग्रंथों में कौणिक नरेश अजातशत्रु 1 के नाम से. प्रसिद्ध है । कहीं कहीं बौद्ध ग्रंथों में इसका नाम बौद्धधम्म राजाओं की परिगणना में आता है । कदाचित् कौणिक पहिले थोड़े समय के लिये बौद्धधम्र्मी रहा हो पर यह सर्वथा सिद्ध है कि पीछे से वह अवश्य जैनी हो गया था । उसने जैनधर्म की खूब उन्नति भी की । कौणिक नरेश ने पूर्ण प्रयत्न करके नार्थ देशों तक में जैनधर्म का प्रचार कराया था । महाराजा कौणिक का यह प्रण था कि जबलों मुझे यह संवाद नहीं मिले कि महावीर स्वामी कहाँ विहार कर रहे हैं मैं भोजन नहीं करूंगा। महाराजा कौणिक बड़े शूरवीर एवं प्रबल साहसी थे । हार हस्ती के लिये बीर कौणिक नरेश ने महाराजा चेटक से बारह वर्ष पर्यन्त
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