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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
प्रचारक मुनियों पर दोषारोपण भी किये। वह सदा मुनियों के प्राचार पर आक्षेप भी किया करता था पर रानो चेलना भी किसी प्रकार कम नहीं थी। उसने बौद्ध भिक्षुकों को लम्बे हाथ लिया। पर अन्त में अनाथी मुनि के प्रतिबोध से श्रेणिक राजा की अभिरुचि जैनधर्म की ओर हुई। महावीर भगवान ने इस अभिरुचि को परम श्रद्धा के रूप में पुष्ट कर दिया। कई देवता आकर श्रेणिक के दर्शन को डिगाने लगे पर उनका प्रयत्न विफल हुआ।
फिर क्या देरी थी ? राजा श्रेणिक ने अपने राज्य में ही नहीं पर भारत के बाहर अनार्य देशों में भी जैनधर्म का प्रचार करना प्रारम्भ किया। महाराजा श्रेणिक के नंदा रानी का पुत्र अभयकुमार ने अनार्य देश में आर्द्रकपुर नगर के महाराज कुमार श्रा के लिये भगवान ऋषभदेव का मूर्ति भेजी थी। इस मूर्ति के दर्शन से आर्द्रकुमार ने ज्ञान प्राप्त कर जैनधर्म की दीक्षा ले अनार्य देश में भी जैनधर्म का खूब प्रचार किया था। राजा श्रेणिक नित्यप्रति १०८ सोने के जौ (अक्षत) बनाकर प्रभु के आगे स्वस्तिक बना चौगति की फेरी से बचने की उज्ज्वल भावना किया करता था। यह नृपति जैनधर्म का प्रसिद्ध प्रचारक हुआ है। श्रेणिक नरेश ने कलिङ्ग देश के अन्तर्गत कुमार एवं कुमारी पर्वत पर भगवान ऋषभदेव स्वामी का विशाल रम्य मन्दिर बनवा कर उसमें स्वर्ण मूर्ती की प्रतिष्ठा करवाई थी। इसके अतिरिक्त उसने उसी पर्वत पर जैन श्रमणों के हित बड़ी बड़ी गुफाओं का निर्माण भी कराया था। इसी अपूर्व और अलौकिक भक्ति की उच्च भावना के कारण आगामी चौबीसी में श्रेणिक नृपति का जीव पद्मनाभ नामक प्रथम तीर्थंकर होगा।