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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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तीसरी ओर जैनमुनि अहिंसा का उपदेश तो करते थे पर उनके गृहक्लेश और शिथिलता के कारण उपदेश का पूरा प्रभाव नहीं पड़ता था। केशी श्रमणाचार्य ने जैन मुनियों को समझा बुझा कर तत्कालीन समय की दशा का विस्तृत वर्णन किया तथा उन्हें सचेत कर जैन धर्म का उत्थान करने के लिए उत्साहित किया।
ठीक आवश्यकता के समय भगवान महावीर स्वामी का शासन प्रारम्भ हुआ। फिर किस बात की कमी थी। जगदुपकारी भगवान महावीर ने अपनी बुलन्द आवाजा से तथा दिव्य शक्ति द्वारा चारों ओर शान्ति फैलाई। आपने बाल्यावस्था से ही तत्वज्ञान से पूर्ण परिचय प्राप्त कर लिया था । आप का मुख्य ध्येय आत्मकल्याण करना था। अहिंसा धर्म का प्रचार करना ही आपका पवित्र उद्देश्य था। "सब जीवों के प्रति प्रेम रखना" यही आपके उपदेश का सार था। बस इसी मंत्र का सारे विश्व पर प्रभाव पड़ा। जाति के बन्धनों को तोड़ कर आपने उच्च और नीच का झगड़ा मिटा दिया । आत्मकल्याण की उज्जवल भावना से प्रेरित हो १४००० मुनि एवम् ३६००० आर्याओंने आप के चरणों की शरण ली थी।
लाखों नहीं वरन् क्रोड़ों की संख्या में जैनोपासक दृष्टिगोचर होने लगे। वेदान्तियो को समुदाय लुप्तसा हो गया। जैनधर्म के प्रताप रूपी सूर्य के आगे बोद्धों का समुदाय उडुगण की तरह फीका नजर आने लगा। थोड़े ही समय में प्रायः सारा भारत जैन धर्म की पताका के नीचे आ गया। विशाला का चेटक नरेश, राजगृही का श्रेणिकभूप, कौणिकभूपति, नौलच्छिक,