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________________ ७८ श्वेताम्बर जैनों के मान्य आवश्यक चूर्णि तथा निशीथ चूर्णि ... एवं वसुदेव हिंडी नामक शास्त्रों में जीवतस्वामी की मूर्ति निर्माण तथा उस की पूजा अर्चा का वर्णन भी पाया जाता है । इस का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है : विद्युन्माली देव ने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए महाहिमवान् नामक पर्वत से अत्युत्तम जाति का चन्दन लाकर, उस चन्दन की गृहस्थावस्था में कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित भाव साधु श्री भगवान महावीर परमात्मा की मूर्ति निर्माण कर प्रतिष्ठा की तत्पश्चात् इस मूर्ति को कल्पवृक्ष की पुष्पमालाओं से पूजन कर चन्दन को पेटी में बन्द कर दिया और समुद्र में जाते हुए एक जहाज़ में (आकाश मण्डल से) डाल दिया। जब यह जहाज़ सिधु सोबार देश के वीतभयपट्टन नामक नगर में पहुंचा तब वहां के राजा उदायी की रानी प्रभावती (राजा चेटक की पुत्री तथा भगवान महावीर की मौसी जो कि जैनधर्म को दृढ़ आसिका-श्राविका थी) ने बड़े भावभक्ति से अर्हन प्रभु की पूजा-अर्चा आदि करके उस पेटी को खोला । विद्युन्माली देव द्वारा निर्मित और कल्पवृक्ष की फूलमालाओं सं. पूजित इस जीवतस्वामी की मूर्ति का नया जैनमंदिर बनवा कर उस में स्थापन किया और उस मूर्ति की स्वयं निरंतर तानों समय (प्रातः, मध्यान्ह तथा सायं) पूजन करने लगी। " ऐसी अनेक जैन तीर्थंकरों को “जीवतस्वामी" अवस्था की अनेक प्राचीन मूर्तियां सरकारी पुरातत्व अन्वेषकों को खोदाई करते हुए प्राप्त हुई हैं । जो कि पद्मासन और खड़ी कायोत्सर्ग
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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