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दिखलाई नहीं देता। इसी मान्यता के अनुसार श्वेतांबरों ने जैन तीर्थंकरों की लंगोट वाली प्रतिमाएं भी पूजा अर्चा के लिये स्थापित की अतः ऐसी प्राचीन प्रतिमायें भी अनेक स्थानों में भगर्भ से प्राप्त हुई हैं। (देखें चित्र नं० ४) और आज भी श्वेतांबर जैन मंदिरों में सर्वत्र स्थापित हैं।
श्वेतांवर जैन तीर्थंकरों को पंचकल्याणक वाली मूर्तियां भी मानते । हैं। इन मूर्तियों में तीर्थंकर के १-न्यवन (गर्भ) कल्याणक के :चिन्ह रूप गर्भ अवस्था में इन की माता को आने वाले स्वप्न अंकित होते हैं। २-जन्म कल्याणक रूप अभिषेक कराने के चिन्ह अंकित होते हैं। ३-दीक्षा कल्याणक रूप मर्ति में केश लुचन वाली तीर्थंकर की मुद्रा होती है। ४. केवलज्ञान कल्याणक रूप आठ प्रतिहार्यों के चिन्ह अंकित हाते हैं। ५. निर्वाण कल्याणक रूप तीर्थंकर की ध्यानस्थ शैलेशीकरणमय मुद्रा होती है। (देखें चित्र नं० ५) किसी किसी तीर्थंकर प्रतिमा में प्रभु के शरीर पर मुकुट कुडल, अलंकारों के चिन्ह भी होते हैं वे सब जन्म कल्याणक के समय इन्द्र द्वारा तीर्थंकर प्रभु को पहनाये हुए अलंकारों अथवा जब प्रभु दीक्षा लेने के लिये शिविका में विराजमान होते हैं उस समय सुसज्जित अलंकारों के चिन्ह अंकित होते हैं । ऐसी प्राचीन मर्तियाँ भी अनेक स्थानों से मिली हैं। __तीर्थंकरों की जीवतस्वामी की मूर्तियाँ भी श्वेताबरों ने पूजा अर्चा के लिये स्थापित की हैं। ऐसी प्राचीन कालीन प्रतिमायें भी पुरातत्त्व विभामः को मिलों हैं। यहां पर एक ऐसी प्राचीन प्रतिमा का परिचय दे करः इस लेख को समाप्त करेंगे ।