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अन्वेषण से कम से कम दस मूर्तियाँ प्रकाश में आयी हैं। श्री प्रमोद लाल पाल लिखता है कि बंगाल में पायी गयी बीस मूर्तियों में से केवल एक श्वेतांबरों की है । इस से विदित होता है कि बंगाल में श्व ेतांबरों के बहुत ही कम अनुयायी थे । आर० डी० बनर्जी ने भी यही लिखा है कि सब जैन मूर्तियां दिगम्बर सम्प्रदाय की हैं। इन बंगाली लेखकों का अनुकरण करते हुए बिना कुछ विचार किये डा० उमाकांत प्रेमानन्द शाह M. A. Ph . D बड़ोदा वालों ने भी अपनी पुस्तक “Studies in Jaina Art " के पृष्ठ २६ में यही लिखा है कि "All the Jain images belong to the Digambara sect" अर्थात् ये सारी जैनमूर्तियों दिगम्बर संप्रदाय की हैं। इस से पहले कि हम इन मूर्तियाँ के विषय में कुछ आलोचना करें, यह आवश्यक प्रतीत होता है कि इन प्राचीन मूर्तियों का कुछ संक्षिप्त परिचय दिया जाय :
१. दीनाजपुर जिलांतर्गत सुरोहोर से वीरेन्द्र अनुसंधान सोसायटी को एक बहुत ही अलौकिक “सभानाथ" की मूर्ति प्राप्त हुई है । बंगाली विद्वान प्रमोद लाल पाल लिखता है कि "यह मूर्ति मूर्तिनिर्माण विज्ञान के दृष्टिकोण से बहुत ही चित्तरंजक तथा विशेष ज्ञातव्य है । पूर्ण ध्यानावस्थित आकृति मस्तक पर सहयोगी जटाओं के साथ, मस्तक के पीछे गोलाकार प्रभामंडल, पुष्पाहारों के साथ विद्याधरों (इन्द्रों) की जोड़ियां, चार जुड़े हुए हाथों के बीच छत्र, दिव्य उपहारों के चिन्ह एवं पुष्प तथा विभिन्न प्रकार के साज़बाजों के साथ मध्य वाली मूर्ति कई हालतों में पालवंश के बैठी हुई बौद्ध जैन भारती वर्ष ११ अंक १ जनवरी १६५२ श्री प्रमोद लाल पाल द्वारा बंगाल में जैन धर्म नामक लेख ।