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________________ ५८ जैनधर्म के प्राचीन इतिहास को तैयार करने के लिये भारतीय जैनजैनेतर साहित्य, जैनधर्मानुयायियों में पाये जाने वाले रीति रिवाज तथा रहन सहन, आचार विचार के ज्ञान के साथ जैनमूर्ति आदि पुरातत्त्व सामग्री भी मुख्य साधन हैं । भगवान् महावीर - वर्धमान के नाम पर ही बंगालदेश के मानभूम सिंहभूम और वर्धमान जिलों के नाम पड़े हैं । " बंगाल का आदि धर्म" नामक लेख में पहाड़पुर से प्रात एक प्राचीन ताम्रपत्र का उल्लेख आया है जिस में लिखा है कि पहाड़पुर के समीप वटगोहाली के जैन विहार ( मंदिर ) के लिये एक ब्राह्मण दम्पती ने चन्दन, धूप तथा फूलों द्वारा अर्हत् की पूजा अर्चा को जारी रखने के लिये भूमि दान दी थी । कुछ काल के बाद इस विहार को ब्राह्मण संस्कृति के रूप में परिवर्तित कर लिया गया था और उसके बाद उत्तर बंगाल में बौद्धों का जोर हो जाने से बौद्धों के सुप्रसिद्ध सोमपुर विहार के रूप में परिवर्तित कर लिया गया बंगाल में जो प्राचीन थोड़ी बहुत जैनमूर्तियां प्राप्त हुई हैं और सरकारी संग्रहालयों में सुरक्षित हैं यहां पर उनका संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक प्रतीत होता है | वीरभूम और बांकुड़ा जिलों में समय समय पर जो जैनमूर्तियां मिली हैं तथा वहां बिखरी पड़ी जैन पुरातत्त्व सामग्री को देख कर श्री आर० डी० बनर्जी ने इसे "जैन प्रभाव वाला क्षेत्र" कहा है। श्री के० डी० मित्र द्वारा सुन्दरवन के खास भाग के *प्राईο ० एच० क्यू० ४ पृष्ठ ४४ साहित्य परिषद पत्रिका १३२२ पृ० ५, जे० बी० ओ० आर० एस १९२७ पृ० ६० । जैन भारती वर्ष ११ अंक १ श्री प्रमोद लाल पाल का " बंगाल में जैन धर्म नामक लेख "
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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