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विस्तार पूर्वक लिख आये हैं कि बंगालदेश में जैन, बौद्ध एवं आजीवक धर्मों का विस्तार तथा इन्हें ही प्रतिष्ठा प्राप्त थी। इन में से भी प्रथम दो शताब्दी तक बंगालदेश में बौद्धधर्म प्रतियोगिता के कारण “ॐ नमोऽर्हन्तो ऋषभो वा ॐ ऋषभं पवित्रम् ।"
( यजुर्वेद अध्याय २५ मंत्र १६) "ॐ रक्ष रक्ष अरिष्टनेमि स्वाहा। वामदेव शा. त्यर्थमुपविधीयते सोऽस्माकं अरिष्ठनेमि स्वाहाः।"
.. . ( यजुर्वेद अन्याय २५ ) "ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्तिनस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिदेधातु ।"
., ( ऋग्वेद अष्टक १ अध्याय ६) "रैवताद्रो जिनो नेमिः युगादिविमलाचले । ऋषणाश्रमा देव, मुक्तिमार्गस्य कारणम् ।"
(प्रभास पुराण) "नाहं रामो न मे वांछा, भावेषु च न मे मनः । शांति-मस्थातु-मिच्छामि चात्मन्येव जिनो यथा । दर्शनवर्त्म वीरा सुरासुर नमस्कृत्य । नीति त्रितय कर्तायो युगादौ प्रथमो जिनः ।"
( मनुस्मृति ) "प्रथम ऋषभो देवो जैनधर्म प्रवर्तकः । ' एकादशः सहस्राणि शिष्याणां धरितो मुनिः । जैनधर्मस्य विस्तारे करोति जगति तले ॥”
(श्रीमाल पुराण ) इन सब उद्धरणों से यह बात निश्चित है कि जैनधर्म न मात्र ऐतिहासिक युग से ही प्राचीन हैं किन्तु वैदिक ब्राह्मणधर्म से भी अत्यत प्राचीन है। ब्राह्मण पुराणों और वेदों में जैन तीर्थ करों एवं जैन सिद्धान्तों के पर्याप्त उल्लेख उपलब्ध हैं। अतएव जैनधर्म के प्रारम्भ को निश्चित तिथि ज्ञात करना इतना सरल कार्य नहीं है किन्तु अशक्य है ।