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________________ करते थे। किन्तु बोधायन के इसी धर्म-सूत्र में बंग जनपद का उल्लेख भी आर्यावर्त से बाहर किया हुआ है। मात्र इतना ही नहीं किन्तु बंग और कलिंग जनपदों में पार्यों का प्रवेश ही अवांछनीय है। इस ग्रंथ में विशेष रूप से ऐसी पाना भी निर्देष को हुई है कि यदि कोई इन दोनों जनपदों में प्रवेश करेगा और फिर वहां से वह वापिस आयेगा तो उसे प्रायश्चित ले कर शुद्ध होना आवश्यक है । इन उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि जैनधर्म का ई० पू० अाठवीं शताब्दी में तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने भी प्रचार किया था । जैनों की मान्यतानुसार अनेक तीर्थंकरों ने प्रत्येक युग में बारम्बार जैनधर्म का उद्योत किया है (Hem V. V. 50, 51) वर्तमान युग के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव तथा अन्तिम दो श्री पार्श्वनाथ और महावीर होगये हैं। श्री पार्श्वनाथ के विषय में लेसन कहता है कि "इस जिन की श्रायु उस के पुरोगामियों के समान संभावित मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती । यह प्रमाण इस के ऐतिहासिक पुरुष होने के मत को खास पुष्ट करता है। (Lesson I. A. ii, P. 26I) तथा मथुरा के जैनशिलालेखों से ज्ञात है कि गृहस्थ भक्तों के ऋषभदेव को अर्घ्य देने के उल्लेख मिलते हैं (E. I. p. 386; Ins no VIII) इस के अतिरिक्त अनेक शिलालेखों में अर्हत् का नहीं परन्तु अर्हन्तों का उल्लेख है (Ibid P, 383 Ins no. HI)। "ये सब लेख इंडो साईथिक ( Indo-scythic) समय के होने चाहियें ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है। अथवा यदि कनिष्क तथा उन के वंशजों के समय शकयुग के साथ मिलते आते होंगे तो प्रथम तथा दूसरी
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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