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________________ से ही, यहां तक कि माथव, विदेघ के पूर्व भी विदेह में बहुत ब्राह्मण वास करते थे इस प्रकार शतपथ ब्राह्मण में उल्लेख पाया जाता है। उस के बाद माथव, विदेघ एवं उनके पुरोहित गोतमराहू गण अंग, विरोचन तथा उसका पुरोहित उदमय, राजर्षि जनक एवं ब्रह्मज्ञ ऋषि याज्ञवल्क, मगधवासी ब्राह्मण मध्यम तथा प्रतिबोधिपुत्र ये सब ईसा पूर्व आठवीं से छठी शताब्दी तक विदेह अंग और मगध जनपदों में सम्मानसहित वास करते थे। विचार करने की आवश्यकता है कि बोधायन जैसे अत्यन्त श्रद्धालु विद्वान ने भी इन सब जनपदों में आर्यों के वास का निषेध नहीं किया। तथापि ई० पू० छठी शताब्दी में भी इन सब जनपदों में (यहां तक कि विदेह में भी) असल निवासियों ने मध्यदेश के धर्मनिष्ठ आर्यों द्वारा ब्राह्मणबन्धु, क्षत्रवन्धु, संकीर्णयोनि प्रभृति अवज्ञा सूचक विशेषण ही प्राप्त किये हैं। अतएव जिस समय विदेह, मगध और अंग के निवासियों ने अांशिक भाव मात्र से ही आर्य-सभ्यता और आर्य-धर्म ग्रहण किया था एवं जिस समय यहा का धर्म भी सभ्यताभिमानी आर्यों के निकट अवज्ञा मात्र ही प्रात करता था, उसी समय अर्थात् ई० पू० छठी शताब्दी में विदेह, मगध आर अंग से पूर्ववर्ती बंगालदेश में आर्यों का धर्म तथा सभ्यता प्रतिष्ठित न हो सके थे, यह बात सहज में ही अनुमान को जा सकती है। आर्यों में से कोई-कोई अथवा अनेकों व्यक्तियों ने उस समय विचित्रता और नवीनता के आकर्षण से अथवा भूख के भय से संतत (जैसा कि हरिवंश से ज्ञात होता है) हो कर विदेह और अंग की पूर्व सीमा को अतिक्रम कर बंगालदेश में प्रवेश किया था। कोई कोई बंगालदेश के नगरों को देख कर वापिस
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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