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________________ ३७. अतएव इन तीनों जनपदों में कहां तक प्रसार प्राप्त किया था करने की आवश्यकता है । वैदिक आर्य सभ्यता ने कब और इस के लिये संक्षेप से विचार शतपथ ब्राह्मण से ज्ञात होता है कि एक समय सदानीरा ( अर्थात गंडक ) नदी के पूर्व वर्त्ती विदेह जनपद में आर्यों के वासस्थान नहीं थे । परन्तु उ.रवर्ती काल में बहुत ब्राह्मणों ने इस जनपद में आर्य सभ्यता और धर्म के चिन्ह स्वरूप यज्ञाग्नि प्रज्वलित की थो । मिथिला के सम्राट जनक के शासनकाल में विदेह आर्य सभ्यता एवं धर्म का अन्यतम प्रधान केन्द्र गिना जाता था । सम्राट जनक बुद्धदेव ( ई० पू० छठी शताब्दी) से दो पुरुष पूर्ववर्त्ती थे । अतएव जनक ई० पू० सातवीं शताब्दी में विद्यमान थे ऐसा कह सकते हैं । एवं उस समय बंगाल- देश से संलग्न पश्चिम सीमा में आर्यों की सभ्यता और धर्म की खूब चढ़ती थी। किन्तु उत्तरवर्ती काल के स्मृति में देखने मे ज्ञात होता है कि विदेह एक मिश्र जाति का नाम था । अथर्व वेद में अङ्ग और मगध को आर्य सभ्यता की सीमा से बाहर गिना हुआ है । किन्तु 'एतरेय ब्राह्मण में' अङ्ग विरोचन' नामक अङ्गराज के अश्वमेध यज्ञ और दानशीलता की कथा वर्णित है अतएव 'ऐतरेय ब्राह्मण' के समय में ( ई० पू० आठवीं शताब्दी) अङ्ग में अर्थात् बंगाल के निकटवर्ती देश में आर्य वैदिकधर्म ने अच्छी तरह से प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी । तथा इस ब्राह्मण ग्रंथ ने पौंड्रदेश वासियों को 'दस्यू' अर्थात अनार्य उल्लेख किया है, एवं बोधायन के धर्मसूत्र में अन देश योनि) कह कर वर्णन किया हुआ है देखने से ज्ञात होता है कि पुरुषमेध के निवासियों को पकड़ कर बलि दिया जाता था । को मिश्र जाति (मंकीर्ण | तत्पश्चात् यजुर्वेद में यज्ञ के समय मगधदेश अथर्व 8 सभ्य जाति ।
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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