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________________ ३६ दिव्यावदान का है, हम इस ग्रंथ में देखते हैं कि एक ही घटना के प्रसंग में बौद्ध विरोधा संप्रदाय को कभी निर्ग्रथ कभी आजीवक बोल कर संबोधन किया गया है इस से मालूम होता है कि 'दिव्यावदान' ग्रंथ रचने के समय ही निर्ग्रथों और आजीवकों की भिन्नता तृतीय पक्ष के लिये अस्पष्ट हो चुकी थी ( अर्थात् दूसरे संप्रदायों के लिये निर्ग्रथों और आजीवकों की भिन्नता का जानना कठिन हो गया था) । दूसरे हम पहले कह चुके हैं कि दिगम्बर आजीवक लोगों ने ज्योतिषी के नाम से ख्याति प्राप्त की थी । जातक के प्रमाण से ज्ञात होता है कि बुद्ध के जीवित काल में ही जीवक लोग ज्योतिषी रूप में भ्रमण करते थे । दिव्यावदान के मतानुसार चन्द्रगुप्त के पुत्र दिन्दुसार की राजसभा में पिंगलवत्स नामक आजीवक ज्योतिषी था । पुनः ईसा की सातवीं शताब्दी में ह्य "सांग के समय निग्रंथों ने हा ज्योतिषी रूप में ख्याति प्राप्त की थी (Beal II P. 168) इस से यह धारणा होती है कि आजीवक संप्रदाय जैन संप्रदाय में मिल गया होगा । यहां पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जिस समय बौद्ध जैन और आजीवक धर्म बंगालदेश में प्रधानता प्राप्त करने के लिये प्रतियोगिता में लगे हुए थे उस समय वैदिक ब्राह्मवर्म क्या करता था ? क्या उस समय यह वैदिक ब्राह्मणधर्म बंगाल में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सका ? इसी प्रश्न के सम्बन्ध में दो एक बात कह कर ही हम इस प्रबन्ध को समाप्त करेंगे । विदेह, अंग और मगध पूर्वभारत की पश्चिम दिशा में अवस्थित थे । अतएव मध्यदेश का वैदिक आर्य प्रभाव संभवतः इन्ही तीनों जनपदों पर पहले पड़ा था । बंगालदेश में आर्य सभ्यता इन से पीछे आई, ऐसा वृत्तांत है ।
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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