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नाम
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कल्पसूत्र
इसी शास्त्र समूह में सब से प्रवान ग्रंथ का है । इसी ग्रंथ में जैनधर्म की भिन्न भिन्न शाखा प्रशाखाओं के नाम जाने जा सकते हैं । उन्हीं शाखाओं में से यहां पर तान्रलिप्तिका कोटिवर्षिया पौड़वर्धनिया एवं (दासी) कटिका खटिका विशेषतया उल्लेखनीय हैं १. तात्रलिप्तिमेदिनीपुर जिलांतरगत तमलूक का प्राचीन नाम है । २. प्राचीन कोटिवर्ष नगर दिनाजपुर जिले में अवस्थित था । ३. पौंडवर्धन नगर बगुड़ा जिला अन्तर्गत महास्थानगढ़ नामक स्थान पर अव स्थित था । ऐसी विद्वानों की धारणा है । ४. कव्वर्ट नगर का उल्लेख महाभारत में भीम की दिग्विजय के प्रसंग पर मिलता है । वराहमिहर के “बृहतसंहिता” नामक ग्रन्थ में भी कट जनपद
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का उल्लेख है । यह जनपद
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"राद" अर्थात् पश्चिम बंगाल में तम्रलिप्ति के समीप ही अवस्थित था । ताम्रलिप्ति, कट, कोटिवर्ष एवं पौंड़वर्धन ये चारों स्थान गुप्तयुग में विशेष प्रसिद्ध थे । इस की पुष्टि के लिये प्रचुर प्रमाण उपलब्ध हैं । पूर्वोक्त जैन : " कल्पसूत्र ग्रंथ” ई० स० ४५४ में सम्राट कुमारगुप्त के शासन काल में ( ई० स० ४२५ से ४५५) लिपिबद्ध हुआ था । इस लिए ऐसा अनुमान करना अनुचित नहीं है कि गुप्त सम्राट के शासन काल में बंगालदेश में ताम्रलिप्ति, कोटिवर्ष आदि चारों
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*हिंतो गोदासेहितो कासव गुत्तेहिंतो इत्थणं गोदासगणे नामं गणे निभ्गए तरसणं इमाम्रो चत्तारी साहा एवमाहिञ्जं ति ते जहा तामलित्तिया कोडीवरसिना, पौंडवद्धनिया, दासी खब्बडिया । ( कल्पसूत्र स्थविरावली) (अनुवादक)